Veer Ras Ke Udaharan | वीर रस की परिभाषा, अर्थ और इसके 20 उदाहरण

वीर रस की परिभाषा, अर्थ और इसके 20 उदाहरण

Veer Ras Ke Udaharan: प्रिय दोस्तों, आज हमने इस लेख में वीर रस Veer Ras के बारे में बताया है क्यूंकि यह भी एक ऐसा विषय है जो अक्सर परीक्षाओ में पूछा जाता है| वीर रस, हास्य रस, आदि ऐसे कई रस है जिनके उदहारण देके परीक्षा में पूछा जाता है की कौन सा रस है, इसलिए हमने पिछले लेख में हास्य रस के बारे में बताया है| Veer Ras Ke Udaharan

और अब वीर रस के बारे में जानकारी दी है, नीचे बताया गया है की वीर रस क्या होता है, इसकी परिभाषा और साथ उदहारण भी जिसे आपको परीक्षा में आसानी हो इसे समझने में | इसलिए में आशा करती हूँ की आप इस लेख को ध्यानपूर्वक पढ़े|

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वीर रस की परिभाषा। Veer ras ki paribhasha

युद्ध या किसी कठिन कार्य को करने के लिए हृदय में स्थायी उत्साह की भावना के जाग्रत होने के फलस्वरूप जो भाव उत्पन्न होता है, उसे वीर रस कहते हैं। तो वीर रस सिद्ध होता है। उसे वीर रस कहते है |

दूसरे शब्दों में कहा जाए तो किसी कार्य को करते समय या किसी रचना आदि को पढ़ते समय जो उत्साह की भावना मन में उत्पन्न होती है, उसे वीर रस कहते हैं। Veer रास वीर रस का स्थायी भाव उत्साह है।

वीर रस के अवयव

  • स्थायी भाव:- उत्साह
  • संचारी भाव:- आवेग, गर्व, उग्रता, अमर्ष, असूया
  • आलम्बन:- शत्रु व याचक
  • उद्दीपन:- शत्रु का अहंकार, वीरों की हुंकार, दुखियों का दुःख, याचक की प्रशंसा
  • अनुभाव:- अंग स्फुरण, रोंगटे खड़े हो जाना

वीर रस के प्रकार । Veer Ras ke Prakar

आधार भेद के आधार पर उत्साह चार प्रकार के होते हैं-

  1. युद्धवीर – जब युद्ध का उत्साह हो |
  2. दयावीर – जब गरीबों पर दया करने का उत्साह हो |
  3. धर्मवीर – जब धर्म प्रचार या धार्मिक कार्य करने का उत्साह हो |
  4. दानवीर – जब गरीबों को दान देने का उत्साह हो |

Veer Ras Ke Udaharan | वीर रस की परिभाषा, अर्थ और इसके 20 उदाहरण

वीर रस का उदाहरण | Veer Ras Ke Udaharan

1. सौमित्रि से घननाद का रव अल्प भी न सहा गया।
निज शत्रु को देखे विना, उनसे तनिक न रहा गया।
रघुवीर से आदेश ले युद्धार्थ वे सजने लगे ।
रणवाद्य भी निर्घाष करके धूम से बजने लगे ।

स्पष्टीकरण:- इस पद्य में वीर रस है,

  • आश्रय – सौमित्रि
  • आलम्बन – मेघनांद
  • स्थायी भाव – उत्साह
  • उद्दीपन विभाव – घननाद का रव
  • अनुभाव – युद्धार्थ सजना
  • संचारी भाव – उग्रता एवं औत्सुक्य,
  • रस – वीर (युद्धवीर)

2. फहरी ध्वजा, फड़की भुजा, बलिदान की ज्वाला उठी।
निज जन्मभू के मान में, चढ़ मुण्ड की माला उठी।

स्पष्टीकरण:- इस पद्य में वीर रस है,

  • आश्रय – निज जन्म भू
  • आलम्बन – मुण्डमाल
  • स्थायी भाव – उत्साह
  • उद्दीपन विभाव – बलिदान की ज्वाला उठना
  • अनुभाव – ध्वजा फहराना, भुजाएँ फड़कना
  • संचारी भाव – उग्रता
  • रस – वीर

छात्रों ऐसे ही मैंने नीचे सिर्फ उदाहरण दिए है, उनके बारे में स्पष्टीकरण नहीं बताया गया है| यह सिर्फ आपको समझाने के लिए बताया गया है, और इसके नीचे आप अपनी प्रैक्टिस के लिए खुद ध्यान लगाकर इनके स्पष्टीकरण को निकाले| जिसे आपको परीक्षा में इसे समझने में भी आसानी होगी | स्पष्टीकरण लिखने से पहले Veer Ras Ke Udaharan उदाहरण को अच्छे से जरूर पढ़े |

Veer Ras Ke Udaharan | वीर रस के 20 उदाहरण प्रैक्टिस के लिए 

(1) म्यान में कैसी प्रलैभानु है?
फरिन टैमटॉम से लेकर गायनदान के नेट्स तक।

(2) कोस्ति लपति कंठ बारिन नागिन की तरह,
रुद्रहीन रिजवै दाई मुंडन के माल को।

(3) लाल चितपाल छत्रसाल महाबाहु बाली,
मैं तुम्हारे कारनामों के बारे में कहाँ डींग मारूँ?

(4) प्रतिभत कटक कतिले केते कटि कटि,
कालिका सी किल्कि कलेउ देती काल को।

(5) हमने बुंदेला हरबोलों के मुँह से कहानी सुनी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

(6) भुज भुजगे की पत्नी भुजंगिनी – सी,
खेड़ी खेड़ी खाती दीह दारुन डालन के।

(7) बख्तर पखरण समुद्र तट में डूबी जाति की मछली,
परवाह ईर्ष्या की तरह पैरों के पार चली जाती है।

(8) रायरायओ चंपति के छत्रसाल महाराज,
भूषण सका करि बखन को बालन के।

(9) पक्षियों को इस तरह छीनने वाले वीर,
तेरे भाले ने दु:ख की वर्षा को हर लिया है॥

(10) चढ़ चेतक पर तलवार उठा,
करता था भूतल पानी को
राणा प्रताप सर काट काट,
करता था सफल जवानी को।।

(11) पच्छी पर छीने ऐसे परे पर छीने वीर।
तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के।।

(12) बातन बातन बतबढ़ होइगै, औ बातन माँ बाढ़ी रार,
दुनहू दल मा हल्ला होइगा दुनहू खैंच लई तलवार।
पैदल के संग पैदल भिरिगे औ असवारन ते असवार,
खट-खट खट-खट टेगा बोलै, बोलै छपक-छपक तरवार।।

(13) बुन्देलों हरबोलो के मुह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मरदानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

(14) लागति लपटि कंठ बैरिन के नागिनी सी,
रुद्रहिं रिझावै दै दै मुंडन के माल कों।।

(15) क्रुद्ध दशानन बीस भुजानि सो लाई कपि रिद अनि सर बत्थत।
लच्छन तच्छन रक्त किये, दृग लच्छ विपच्छन के सिर कट्टत||

(16) फहरी ध्वजा, फड़की भुजा, बलिदान की ज्वाला उठी।
मेरे ही जन्म के सम्मान में मस्तक की माला उठी।

(17) साजि चतुरंग सैन अंग उमंग धारि
सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है।
भूषन भनत नाद बिहद नगारन के
नदी नाद मद गैबरन के रलत हैं॥

(18) लाल छितिपाल छत्रसाल महाबाहु बली।
कहाँ लौं बखान करों तेरी कलवार कों।।

(19) कौशल दिखलाया चालों में
उड़ गया भयानक भालों में
निर्भीक गया वह ढालों में
सरपट दौड़ा करवालों में।।

(20) निकसत म्यान तें मयूखैं प्रलैभानु कैसी,
फारैं तमतोम से गयंदन के जाल कों।।

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