मीराबाई का जीवन परिचय | Mirabai Ka Jivan Parichay
Mirabai Ka Jivan Parichay:- मीराबाई (Mirabai) (1576–1638) एक प्रसिद्ध भक्ति संत और हिंदू धर्म की महिला संत थीं, जिनका जन्म राजपूताना (वर्तमान राजस्थान, भारत) के कुड़कुड़ी गांव में हुआ था। उन्होंने भगवान कृष्ण के प्रति अपनी अत्यंत श्रद्धा और प्रेम की अद्वितीय भक्ति के लिए प्रसिद्धता प्राप्त की थी।
मीराबाई का जीवन उनके भक्तिभावनाओं और कविताओं के माध्यम से प्रस्तुत होता है:
- बचपन और शिक्षा: मीराबाई का जन्म राजपूताना के राजा रतन सिंह के घराने में हुआ था। उन्होंने बचपन से ही भगवान कृष्ण के प्रति गहरे आकर्षण का अनुभव किया। वे उनके कथाओं सुनकर बचपन से ही प्रभावित हो गई थीं।
- विवाह और परिवार: मीराबाई का विवाह राणा भोज के साथ हुआ, जो मेवाड़ के राजा थे। उनके विवाह के बाद भी, उनका ब्रह्मचर्य और कृष्ण भक्ति में विश्वास बरकरार रहा।
- भक्ति में लीनता: मीराबाई ने अपने पतिपरायण और समाजिक सर्वस्व के बावजूद भगवान कृष्ण के प्रति अपने प्रेम को बढ़ावा देने का प्रयास किया। वे भजन, कीर्तन, और भगवान कृष्ण की महिमा के गीत गाती थीं।
- सामाजिक आपत्तियाँ: मीराबाई की भक्ति उनके परिवार और समाज में विवाद पैदा करने लगी, क्योंकि उनके पति और सामाजिक परंपरा उनके नये भक्तिकल्पनाओं के खिलाफ थे।
- भक्ति में विश्वास और समाधि: मीराबाई का अंतिम जीवनकाल व्रज में व्यतीत हुआ, जहाँ उन्होंने भगवान कृष्ण के प्रति अपनी भक्ति को और भी गहराई दी। उन्होंने समाधि प्राप्त किया, जो उनके भगवान के साथ एक हो जाने की दरबार था।
मीराबाई की कविताएँ (Mirabai Ka Jivan Parichay) और भक्तिगीत आज भी लोगों को उनके प्रेम और भक्ति की अद्वितीय अभिव्यक्ति के रूप में प्रेरित करती हैं। उनकी कविताएँ हिंदी साहित्य की महत्वपूर्ण धारा में गिनी जाती हैं और उनकी भक्ति और साहित्यिक योगदान को समर्पित किया जाता है।
मीराबाई के बचपन की कहानी | Mirabai Ke Bachpan Ki Kahani
Mirabai Ka Jivan Parichay:- मीराबाई (Mirabai) का जन्म 1498 में राजपूताना के मेड़ता गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम राजा रतन सिंह था और माता का नाम राणी कुन्दनबाई था। मीराबाई का जन्म भगवान कृष्ण की कथाओं और उनके भक्ति के प्रति गहरे आकर्षण वाली एक आत्मा के रूप में हुआ था।
मीराबाई का बचपन भगवान कृष्ण की कहानियों के साथ गुजरता रहा। वे बचपन से ही भगवान कृष्ण की मूर्ति को देखकर उनके प्रति गहरी श्रद्धा और प्रेम रखती थीं। उनके घर में कृष्ण भक्ति की माहौल थी और इसका प्रभाव मीराबाई पर पड़ा।
मीराबाई की बचपन की कई किस्से लोककथाओं और कहानियों में बताए जाते हैं, जो उनके अत्यंत भक्ति और प्रेम की प्रतीति कराते हैं। एक किस्सा बताता है कि एक बार मीराबाई ने छोटे बच्चों के साथ खेलते समय कृष्ण भगवान की छवि को एक पीपल के पेड़ पर बैठाकर खेला। उन्होंने उन्हें अपने साथी के रूप में माना और उनके साथ खूबसूरत खेल खेला।
एक दिन, मीराबाई की माता ने देख लिया कि उनकी बेटी एक पेड़ पर खेल रही हैं, जिसके शाखाओं पर भगवान कृष्ण की मूर्ति लगी हुई थी। माता कुन्दनबाई ने उन्हें उतारने के लिए कहा, लेकिन मीराबाई ने जवाब दिया, “माता, मैं कृष्ण के साथ खेल रही हूँ, क्या मैं उन्हें तुम्हारी इजाजत से उतार सकती हूँ?” इसके बाद उनकी माता ने उनके भक्ति और प्रेम को समझा और उन्हें स्वतंत्रता दी कि वे भगवान कृष्ण के साथ खेल सकती हैं।
इस प्रकार, मीराबाई के बचपन का एक रंगीन और आदर्शमय चित्रण किया जाता है, जो उनकी भक्ति और प्रेम की मूल नींव को दर्शाता है।
मीराबाई का भगवान श्री कृष्ण के प्रति प्रेम | Mirabai Ka Jivan Parichay
मीराबाई का भगवान श्री कृष्ण के प्रति प्रेम उनके जीवन की मुख्य धारा थी और उनकी कविताओं, भजनों और गीतों के माध्यम से उन्होंने इस प्रेम को अद्वितीय रूप में व्यक्त किया। उनकी कविताओं में भगवान कृष्ण के प्रति गहरी आकर्षण, भक्ति और प्रेम की अद्वितीय व्यक्ति की भावना दिखती है।
मीराबाई का प्रेम भगवान कृष्ण की कथाओं, लीलाओं, और विशेष रूपों के प्रति था। उन्होंने उनके बचपन के खिलवाड़े, गोपियों के साथ रासलीला, और उनके दिव्य गुणों का आदर किया। उन्होंने अपने कविताओं में कृष्ण के सखा, प्रियतम, और परम प्रेमी के रूप में उन्हें देखा।
मीराबाई के भगवान कृष्ण के प्रति प्रेम का एक अद्वितीय आदर्श उनके विवाह के बाद की कविताओं में प्रकट होता है। उनके पति राणा भोज के बावजूद भी वे भगवान कृष्ण के प्रति अपनी अनन्य भक्ति में लीन रहती थीं। उन्होंने अपनी कविताओं में अपने पति को भगवान कृष्ण के साथ व्याप्त होते हुए भी नहीं देखा, और उनके प्रेम को अपने जीवन की सबसे महत्वपूर्ण धारा माना।
मीराबाई के भगवान कृष्ण के प्रति प्रेम का यह अद्वितीय संबंध उनकी कविताओं में जागरूक और आदर्शमय रूप में प्रकट होता है, और यही उनके कविताओं को एक अद्वितीय स्थान देता है भारतीय साहित्य में।
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मीराबाई का विवाह | Mirabai Ka Vivah
Mirabai Ka Jivan Parichay:- मीराबाई का विवाह मेवाड़ के राजा राणा संगा के साथ हुआ था। वर्ष 1516 में, मीराबाई के पिता राजा रतन सिंह ने उनकी शादी राणा संगा से कर दी। यह विवाह भरतपुर, राजस्थान के बीच के चित्तौड़गढ़ के दुश्यंतसर में सम्पन्न हुआ था।
मीराबाई के विवाह की यह कहानी एक आम शादी की तरह नहीं थी। मीराबाई की अद्वितीय भक्ति और भगवान कृष्ण के प्रति प्रेम के चलते, वे अपने पति और समाज की परंपराओं के विरुद्ध आगे बढ़ीं। उनके पति राणा संगा भगवान कृष्ण की भक्ति को नहीं समझ सकते थे और उनके नये भक्तिकल्पनाओं के खिलाफ थे।
मीराबाई का विवाह केवल उनके भक्तिपूर्ण जीवन में एक मात्र कड़ी जरूरत की थी, जिसने उन्हें भगवान कृष्ण की अद्वितीय भक्ति की ओर प्रकट होने में मदद की। विवाह के बाद भी, मीराबाई ने भगवान कृष्ण के प्रति अपने प्रेम को बढ़ावा देने में नहीं हिचकिचाया और उनकी भक्ति और साधना का पालन किया।
मीराबाई के दोहे | Mirabai Ke Dohe
Mirabai Ka Jivan Parichay:- मीराबाई ने अपनी कविताओं में भगवान कृष्ण के प्रति अपने प्रेम और भक्ति को व्यक्त किया। यहाँ कुछ मीराबाई के प्रसिद्ध दोहे हैं:
- तूँ घट घट का पानी पिया, तूँ मेरो श्याम: जीवन मुक्ति का पावन अमृत रूप धाम।
- मैं तो घर माई के बिना गई, गोकुल पयो धायो यशोदा: रैनियाँ के यों गोकुल चली, माखन खायो यशोदा।
- पाग घुँघरू बांध मेरी बाई, निकलो गृहवाल: द्वारपति से मैं करुँगी बिनती, आवत जावत फाल।
- रात श्याम सपना में आया, मैं घट घट का पानी उठाया। मैं घट घट का पानी पी आई, जीवन मुक्ति का पानी पी आई।
- मीरा कृष्ण से कहें जरा, तू वामी मोहिं चुगा: इस मैं कांडा बढ़ा दूं, मोहिं विपत्ति भरपूर।
ये दोहे मीराबाई की भगवान कृष्ण के प्रति उनके अद्वितीय प्रेम और भक्ति की प्रतीति कराते हैं। उनकी कविताओं में आत्मा का भगवान के साथ अद्वितीय एकता और प्रेम का उद्घाटन होता है।
मीराबाई की मृत्यु | Mirabai Ki Mrityu
मीराबाई की मृत्यु के बारे में सटीक जानकारी नहीं है, लेकिन अनुमानित रूप से वे लगभग 1623 ईसा पूर्व में निर्गमन कर गईं थीं।
उनके जीवन के अंतिम दिनों का विवरण विभिन्न कथाओं में मिलता है। एक कथा के अनुसार, मीराबाई ने अपने जीवन के आखिरी दिनों में व्रज क्षेत्र की ओर यात्रा की थी, जहाँ उन्होंने भगवान कृष्ण के दर्शन किए। उनके आत्मा का विलय भगवान कृष्ण के साथ हो गया और उनका शरीर अपरामृत में विलीन हो गया।
वे भगवान कृष्ण के प्रति अपनी अद्वितीय भक्ति और प्रेम के लिए प्रसिद्ध हैं और उनकी कविताएं आज भी उनके उत्कृष्ट भक्ति और समर्पण की प्रतीक हैं।
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