Kabir Ki Sakhiyan | कबीर की साखियाँ व्याख्या सहित

कबीर की साखियाँ व्याख्या सहित 

Kabir Ki Sakhiyan: आज हम इस लेख में कबीर की साखियाँ के बारे में पढ़ेंगे, हम जाते है की परीक्षाओ में अकसर पूछे जाने वाला विषय है | NCERT हिंदी से हम कबीर की साखियाँ के बारे में जानेंगे और साथ ही इसके व्याख्य भी, जिसे आपको परीक्षा में दोहे समझने में आसानी हो और आप उसका व्याख्या खुद बना सखे | Kabir Ki Sakhiyan तो इसलिए कबीर की साखियाँ जानने के लिए इस लेख को पूरा जरूर पढ़े| यह परीक्षा में पूछे जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण विषय है|

Kabir Ki Sakhiyan With Explanation 

चलिए नीचे देखते है कबीर की साखियाँ व्याख्या सहित:

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जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान॥

व्याख्या: मनुष्य को किसी साधु की जाति या धर्म से नहीं, बल्कि अपने ज्ञान से सरोकार रखना चाहिए। मानो सौदेबाजी तलवार के लिए की जाए न कि म्यान के लिए। युद्ध में तलवार का प्रभाव, चाहे म्यान लाख रुपये का हो या एक रुपये का, युद्ध में बराबर होता है।

आवत गारी एक है, उलटत होई अनेक।
कह कबीर नहीं उलटिए, वही एक की एक॥

व्याख्या: यदि कोई आपको गाली दे  तो उसका उल्टा नहीं करना चाहिए, क्योंकि यदि आप किसी की गाली को स्वीकार नहीं करते हैं तो वह गाली देने वाले के परिचित विचारों को स्वत: ही लौटा देगी। यदि आप विपरीत लेन देते हैं, तो इसका मतलब है कि आपने उसकी लेन भी ले ली है। यदि कोई आपको अपशब्द कहे तो नरेन्द्र उसकी बात सुनने में झूठ बोलता है, मत के कारण मन का तनाव बढ़ रहा है।

Kabir Ki Sakhiyan | कबीर की साखियाँ व्याख्या सहित

माला तो कर में फिरैं, जीभ फिरै मुख माहीं।
मनवा तो दहू दिस फिरै, यह तो सुमिरन नाहीं॥

व्याख्या: कबीर दास को पाखंड से सख्त नफरत थी। जो व्यक्ति माला फेर के मुख में मंत्र पढ़ लेता है वह सच्ची पूजा नहीं करता है। क्योंकि माला फेरने के साथ-साथ मन भी दसों दिशाओं में भटकता है। Kabir Ki Sakhiyan

कबीर घास न नींदिये, जो पाऊँ तलि होई।
उड़ी पड़े जब आंखि में, खरी दुहेली होई॥

व्याख्या: घास का अर्थ है तुच्छ चीजें। यदि छोटी से छोटी वस्तु भी आपके चरणों के नीचे हो तो उसकी निंदा नहीं करनी चाहिए। क्योंकि आंख में अगर तिनका भी गिर जाए तो भयंकर पीड़ा देता है। हर छोटी से छोटी चीज का महत्व होता है और हमें उस महत्व को मित्र बनाने का प्रयास करना चाहिए।

जग में बैरी कोई नहीं, जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय॥

व्याख्या: यदि आपका मन शांत रहता है तो आपकी कभी किसी से दुश्मनी नहीं हो सकती। यदि आप अपना अहंकार त्याग देंगे तो हर मनुष्य आपकी ओर प्रेम और सद्भावना की दृष्टि से देखेगा। Kabir Ki Sakhiyan

Kabir Ki Sakhiyan NCERT Solutions | कबीर की साखियाँ

प्रश्न 1: ‘तलवार का महत्व होता है म्यान का नहीं’ उस उदाहरण से कबीर क्या कहना चाहते हैं? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: इस उदाहरण से कबीर कहना चाहते हैं कि हमें किसी संत की जाति या वंश से संबंध नहीं रखना चाहिए। हमें उस व्यक्ति के ज्ञान से मतलब होना चाहिए। किसी की जाति या परिवार या रूप बाहरी आवरण की तरह होता है। आकर्षक पैकेजिंग का मतलब जरूरी नहीं है कि उसके अंदर की वस्तु उपयोगी है। महाभारत में अष्टावक्र नाम के व्यक्ति का वर्णन मिलता है। उसके हाथ-पैर टेढ़े-मेढ़े थे और वह बड़ा कुरूप था, लेकिन वाय बड़ा ज्ञानी था।

प्रश्न 2: पाठ की तीसरी साखी जिसकी एक पंक्ति है ‘मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं’ के द्वारा कबीर क्या कहना चाहते हैं?

उत्तर: इस दोहे में कबीर ने सच्ची उपासना के लिए शांत मन का महत्व बताया है। यदि कोई शांत मन से अपने इष्ट देव की पूजा करता है तभी वह सच्ची पूजा कर सकता है। माला फेरने या ढोल पीटने से मन भ्रमित हो जाता है और सच्ची पूजा कभी हो ही नहीं सकती।

प्रश्न 3: कबीर घास की निंदा करने से क्यों मना करते हैं? पढ़े हुए दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: दुनिया में हर चीज का अपना महत्व होता है। इसलिए छोटी से छोटी बात को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। हो सकता है कोई मामूली सी दिखने वाली चीज हमारे बहुत काम आ जाए। यह तब भी हो सकता है जब हम जिस चीज़ को नज़रअंदाज़ करते हैं वह हमें गंभीर दर्द का कारण बन सकती है।

प्रश्न 4: मनुष्य के व्यवहार में ही दूसरों को विरोधी बना लेनेवाले दोष होते हैं। यह भावार्थ किस दोहे से व्यक्त होता है?

उत्तर: पिछले दोहे से  ”जग में बैरी कोई नहीं, जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय”

Kabir Ki Sakhiyan और पढ़े कबीर दास की साखियाँ व्याख्या सहित

 

 

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