Karak Kise Kahte Hai | कारक किसे कहते है परिभाषा, भेद, लक्षण

कारक किसे कहते है | Karak Kise Kahte Hai

कारक (Karak Kise Kahte Hai) संस्कृत और हिंदी व्याकरण में एक व्याकरणिक शब्द है जो वाक्य के विभिन्न अंशों के संबंध को दर्शाने के लिए प्रयोग होता है। कारक शब्द संज्ञा या सर्वनाम के साथ वाक्य के विभिन्न पदों के बीच संबंध स्थापित करने के लिए प्रयुक्त होते हैं। इनका प्रमुख उद्देश्य वाक्य के कर्ता, कर्म, करण, संप्रदान, अपादान, संबंध और आदि को प्रदर्शित करना होता है।

कारक वाक्य के अंशों के प्रकार और उनके उदाहरण हैं:

  • कर्ता कारक (Karta Karak): इसका प्रयोग कर्ता को दर्शाने के लिए होता है। उदाहरण: राम घर जाता है। (राम कर्ता है।)
  • कर्म कारक (Karma Karak): इसका प्रयोग कर्म को दर्शाने के लिए होता है। उदाहरण: राम खाना खाता है। (खाना कर्म है।)
  • करण कारक (Karana Karak): इसका प्रयोग करण को दर्शाने के लिए होता है। उदाहरण: राम दौड़ता है। (दौड़ना करण है।)
  • संप्रदान कारक (Sampradan Karak): इसका प्रयोग संप्रदान को दर्शाने के लिए होता है। उदाहरण: राम गीता को देता है। (गीता संप्रदान है।)
  • अपादान कारक (Apadan Karak): इसका प्रयोग अपादान को दर्शाने के लिए होता है। उदाहरण: राम घर से निकलता है। (घर अपादान है।)
  • संबंध कारक (Sambandh Karak): इसका प्रयोग संबंध को दर्शाने के लिए होता है। उदाहरण: राम के लिए पुस्तक मिली। (पुस्तक संबंध है।)

ये हैं कुछ प्रमुख कारक जो वाक्य के विभिन्न अंशों के संबंध को दर्शाते हैं।

कारक की परिभाषा | Karak Ki Paribhasha

कारक (Karak) शब्द का व्याकरणिक अर्थ होता है, जो एक शब्द या शब्द समूह होता है जिसका प्रयोग वाक्य के विभिन्न पदों के बीच संबंध स्थापित करने के लिए होता है। कारक वाक्य के विभिन्न अंशों के साथ मिलकर वाक्य को संपूर्ण बनाने में मदद करता है और वाक्य के अर्थ को स्पष्ट करता है।

कारक की भूमिका वाक्य में विभिन्न पदों के बीच संबंध स्थापित करने के लिए होती है। कारक वाक्य के भेदों को अच्छी तरह समझना महत्वपूर्ण होता है ताकि सही वाक्य रचना और वाक्यार्थ को समझने में सुविधा हो सके।

कारक के प्रमुख प्रकार होते हैं, जैसे कर्ता कारक, कर्म कारक, करण कारक, संप्रदान कारक, अपादान कारक और संबंध कारक। इन प्रकार के कारक वाक्य के विभिन्न पदों के बीच के संबंध को दर्शाते हैं और वाक्य के वाक्यार्थ को स्पष्ट करते हैं।

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कारक के भेद | Karak Ke Bhed

कारक (Karak) के व्याकरणिक दृष्टि से विभिन्न प्रकार होते हैं जो वाक्य में विभिन्न पदों के संबंध को दर्शाते हैं। निम्नलिखित हैं कारक के प्रमुख भेद:

  • कर्ता कारक (Karta Karak): यह कारक वाक्य में कर्ता को दर्शाता है। इसका प्रमुख रूप है “के द्वारा” और उदाहरण वाक्य है “राम ने पुस्तक पढ़ी” जहां “राम” कर्ता कारक है।
  • कर्म कारक (Karma Karak): यह कारक वाक्य में कर्म को दर्शाता है। इसका प्रमुख रूप है “को” और उदाहरण वाक्य है “राम ने पुस्तक पढ़ी” जहां “पुस्तक” कर्म कारक है।
  • करण कारक (Karana Karak): यह कारक वाक्य में करण को दर्शाता है। इसका प्रमुख रूप है “से” और उदाहरण वाक्य है “राम ने पुस्तक पढ़ी” जहां “पढ़ना” करण कारक है।
  • संप्रदान कारक (Sampradan Karak): यह कारक वाक्य में संप्रदान को दर्शाता है। इसका प्रमुख रूप है “को” और उदाहरण वाक्य है “राम ने पुस्तक पढ़ी” जहां “राम” संप्रदान कारक है।
  • अपादान कारक (Apadan Karak): यह कारक वाक्य में अपादान को दर्शाता है। इसका प्रमुख रूप है “से” और उदाहरण वाक्य है “राम ने पुस्तक पढ़ी” जहां “पुस्तक” अपादान कारक है।
  • संबंध कारक (Sambandh Karak): यह कारक वाक्य में संबंध को दर्शाता है। इसका प्रमुख रूप है “के लिए” और उदाहरण वाक्य है “राम के लिए पुस्तक मिली” जहां “पुस्तक” संबंध कारक है।

ये हैं कारक के प्रमुख भेद, जो वाक्य में विभिन्न पदों के संबंध को दर्शाते हैं और वाक्य के वाक्यार्थ को स्पष्ट करते हैं।

कारक के लक्षण | Karak Ke Lakshan

कारक के व्याकरणिक लक्षण (characteristics) निम्नलिखित हो सकते हैं:

  • संबंध निर्माण: कारक वाक्य में विभिन्न पदों के बीच संबंध स्थापित करने के लिए प्रयुक्त होते हैं। वे वाक्यांशों को एक-दूसरे से जोड़कर वाक्य को सम्पूर्ण बनाते हैं।
  • पद का वाचकत्व: कारक पद को प्राथमिकता से वाचकत्व देते हैं। वे वाक्य में निर्दिष्ट कार्य का कर्ता, कर्म, करण, संप्रदान, अपादान या संबंध को प्रतिष्ठित करते हैं।
  • प्रयोग के प्रकार: कारक विभिन्न प्रकार के होते हैं, जैसे कर्ता कारक, कर्म कारक, करण कारक, संप्रदान कारक, अपादान कारक और संबंध कारक। प्रत्येक प्रकार का कारक वाक्य में अपना विशेष प्रयोग और पदों के साथ संबंधित होता है।
  • पद के प्रतिष्ठान: कारक पद वाक्य में विशेष प्रतिष्ठान रखते हैं और उन्हें अन्य पदों के साथ संयोजित करके वाक्यार्थ को सम्पूर्ण करते हैं।
  • पदों के संयोग: कारक वाक्य में कार्य के पदों के बीच संयोग स्थापित करते हैं और इस प्रकार से वाक्य को सुसंगत और समझने योग्य बनाते हैं। वे वाक्यांशों के साथ संगठन और एकीकरण का कार्य करते हैं, जिससे वाक्य का व्याकरणिक ढांचा स्पष्ट होता है।

ये हैं कारक के प्रमुख लक्षण, जो कारक को वाक्य में विशेष बनाते हैं और वाक्यार्थ को समझने में मदद करते हैं।

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