Bharatendu Harishchandra Ka Jivan Parichay | भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय

भारतेंदु हरिश्चंद्र का जीवन परिचय | Bharatendu Harishchandra Ka Jivan Parichay

भारतेंदु हरिश्चंद्र (Bharatendu Harishchandra) (1869–1947) भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान नेता और विचारक थे। उन्हें ‘राष्ट्रबंधु’ के उपनाम से भी जाना जाता है। उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को गांधीजी के साथ मिलकर नेतृत्व किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

जीवनी:

  • भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म 5 सितंबर 1869 को वराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था।
  • उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी में प्राप्त की और फिर कलकत्ता विश्वविद्यालय से बी.ए. की डिग्री प्राप्त की।
  • उनका राष्ट्रीय चेतना के प्रति आकर्षण बचपन से ही था, और उन्होंने बाद में विविध समाजसेवा और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में योगदान किया।
  • उन्होंने 1921 में गांधीजी के सत्याग्रह आंदोलन में भाग लिया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ नेतृत्व किया।
  • भारत छोड़ो आंदोलन में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान था। उन्होंने विशेष रूप से असहमति की जगह विवादों को समझाने का प्रयास किया और महात्मा गांधी के नेतृत्व में आंदोलन को समर्थन दिया।
  • 1942 में क्रिप्स मिशन के दौरान, विभाजनवाद के खिलाफ उनके प्रति आपत्तियाँ थीं, लेकिन उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के मार्ग पर अडिग रहकर योगदान दिया।
  • उनका निधन 26 दिसंबर 1947 को हुआ, जब भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का मार्ग पूरी तरह से प्रस्थान हो चुका था और भारत ने स्वतंत्रता प्राप्त की।
  • भारतेंदु हरिश्चंद्र को उनके सतत संघर्ष और स्वतंत्रता संग्राम में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए स्मरणीय रूप से याद किया जाता है। उन्होंने भारतीय समाज को एकता और आपसी समझ के माध्यम से सामाजिक और राजनीतिक उत्थान की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया।

भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म और बचपन | Bharatendu Harishchandra Ka Janam Aur Bachpan

भारतेंदु हरिश्चंद्र Bharatendu Harishchandra का जन्म 5 सितंबर 1869 को वाराणसी (काशी), उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था। उनका पूरा नाम भागवती चरण वर्मा था। उनका बचपन काशी में गुजरा, जहां उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। उनके पिता का नाम सिताराम पंडित था और माता का नाम अनंता देवी था। उनके परिवार में विद्या का महत्व समझाया जाता था और वे बचपन से ही उच्च शिक्षा की दिशा में प्रेरित हो गए थे।

भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा काशी के विशेषज्ञ शिक्षकों से प्राप्त की और फिर उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से बीए की डिग्री प्राप्त की। उनके बचपन के दौरान ही उनका राष्ट्रीय चेतना में आकर्षण दिखाई देता था, और उन्होंने बचपन से ही सामाजिक सुधार और भारतीय स्वतंत्रता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाना शुरू किया था।

भारतेंदु हरिश्चंद्र की शिक्षा | Bharatendu Harishchandra Ki Shiksha

भारतेंदु हरिश्चंद्र Bharatendu Harishchandra ने अपनी शिक्षा की प्रारंभिक दशकों में वाराणसी में प्राप्त की और फिर उन्होंने अपनी शिक्षा को विस्तार देने के लिए कई स्थानों पर अध्ययन किया। यहां उनकी शिक्षा की मुख्य घटनाएं हैं:

  • काशी (वाराणसी): भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म वाराणसी में हुआ था और वह यहां अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करते रहे।
  • कलकत्ता (कोलकाता): उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा के लिए कलकत्ता गए, जहां उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से बीए की डिग्री प्राप्त की।
  • इंग्लैंड: उन्होंने इंग्लैंड भी जाकर अध्ययन किया। वह उपन्यास लेखक और कवि बनने का सपना देख रहे थे, इसलिए उन्होंने इंग्लैंड के रीडिंग शहर में अध्ययन किया और वहां से उपन्यासों की शैली का प्रभाव प्राप्त किया।

भारतेंदु हरिश्चंद्र की शिक्षा की यह विभिन्न चरण उनके विचार और कार्यक्षेत्रों को बहुत प्रभावित किए, और उन्होंने सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक मुद्दों पर गहरा अध्ययन किया जिसने उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान देने की दिशा में प्रेरित किया।

भारतेंदु हरिश्चंद्र का विवाह | Bharatendu Harishchandra Ka Vivah

भारतेंदु हरिश्चंद्र Bharatendu Harishchandra का विवाह 1898 में जब वे उम्र में लगभग 29 वर्ष के थे, उनकी दूसरी पत्नी स्वर्णकुमारी देवी से हुआ था। उनकी पहली पत्नी का नाम लीलावती चाक्रवर्ती था और वे उनके बचपन के मित्र के भाई की विधवा थीं। भारतेंदु हरिश्चंद्र का विवाह लीलावती से 1892 में हुआ था, लेकिन उनकी इस पत्नी की मृत्यु 1896 में हो गई थी।

इसके बाद, 1898 में उन्होंने स्वर्णकुमारी देवी से दूसरी शादी की। उनका यह विवाह उनके समाज सुधार और समाज के परंपरागत नियमों के खिलाफ एक आग्रह भी था। स्वर्णकुमारी देवी भारतेंदु हरिश्चंद्र की साथी बनकर स्वतंत्रता संग्राम में उनका साथ दिया और उनके सोच और कार्यों को समर्थन दिया।

विवाह के बाद, भारतेंदु हरिश्चंद्र और स्वर्णकुमारी देवी ने एक साथ भारतीय समाज के सुधार के क्षेत्र में योगदान किया और स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

भारतेंदु हरिश्चंद्र की प्रसिद्ध कविताएं | Bharatendu Harishchandra Ki Prasidh Kavitaye

भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज, राजनीति, और व्यक्तिगत अनुभवों को व्यक्त किया। उनकी कविताओं में सामाजिक सुधार, स्वतंत्रता, और राष्ट्रीय आवश्यकताओं के प्रति उनकी मानसिकता दिखती है। यहां कुछ प्रसिद्ध कविताएं हैं:

  • वन्दे मातरम् (Vande Mataram): यह कविता उनकी सबसे प्रसिद्ध कविताओं में से एक है और इसे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की आवश्यकताओं को व्यक्त करने के लिए प्रेरित किया था।
  • कलपना (Kalpana): इस कविता में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने युवाओं की ऊर्जा, सपने और आत्मविश्वास की महत्वपूर्ण भूमिका को दिखाया है।
  • सद्योव्रतस्वप्नम् (Sadyovratasvapnam): इस कविता में वे आध्यात्मिकता के प्रति अपने विचार को व्यक्त करते हैं और यह भी बताते हैं कि मानवता के लिए क्या महत्वपूर्ण है।
  • हरि सृष्टिकर्ता (Hari Srishtikarta): इस कविता में वे भगवान की महत्वपूर्णता और विश्वास को व्यक्त करते हैं।
  • कामयानी (Kamayani): यह कविता उनकी एक महत्वपूर्ण काव्यरचना है, जिसमें उन्होंने मानवीय भावनाओं, राष्ट्रीयता, और प्रेम के विभिन्न पहलुओं को छूने का प्रयास किया।

भारतेंदु हरिश्चंद्र की कविताएं उनके समाज सुधारक दृष्टिकोण, राष्ट्रीयता के प्रति उनकी समर्पण भावना और व्यक्तिगत अनुभवों की दृष्टि को दर्शाती हैं। उनकी कविताओं में एक गहरा संवाद भी होता है, जो उनके समय की मानवीयता और सामाजिक मुद्दों को दर्शाता है।

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भारतेंदु हरिश्चंद्र की रचनाएं | Bharatendu Harishchandra Ki Rachnaye

भारतेंदु हरिश्चंद्र Bharatendu Harishchandra की रचनाओं में कविताएँ, उपन्यास, नाटक और निबंध शामिल हैं, जो समाज, राजनीति, धर्म और व्यक्तिगत जीवन के विभिन्न पहलुओं पर आधारित हैं। यहां कुछ महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं:

  • कामयानी (Kamayani): यह उनका एक प्रमुख काव्यरचना है, जो सामाजिक और धार्मिक मुद्दों पर आधारित है। इसमें मानवीय भावनाओं, प्रेम, समाज, और मानवता के मुद्दे को उन्होंने व्यक्त किया है।
  • आर्य वज्र (Arya Vajra): यह एक नाटक है जिसमें वे विभिन्न कर्मयोगी तत्त्वों को उजागर करते हैं और आत्म-समर्पण के माध्यम से उद्धारण की बात करते हैं।
  • पंचजन्य (Panchajanya): यह एक अनूठा उपन्यास है जो मानवता, समाज और धर्म के मुद्दों पर विचार करता है।
  • मधुशाला (Madhushala): यह एक प्रसिद्ध कविता है जो प्रेम, जीवन, और मृत्यु के विचारों को एक मदिरालय की अनुपम छवि के माध्यम से प्रस्तुत करती है।
  • स्वर्णकिरति (Svarnakiriti): यह एक काव्य नाटक है जिसमें वे समाज, राजनीति, और धर्म के मुद्दों को व्यक्त करते हैं।
  • रशियात्र (Rashiyatra): यह एक उपन्यास है जिसमें वे राजनीति, समाज, और धर्म के मुद्दों को व्यक्त करते हैं।
  • स्वराज्य शील (Svarajya Shil): इस रचना में वे स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय आवश्यकताओं के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हैं।
  • वायु पुत्र (Vayuputra): इस उपन्यास में वे भारतीय महाभारत कथानक को आधुनिक परिप्रेक्ष्य से प्रस्तुत करते हैं।

भारतेंदु हरिश्चंद्र Bharatendu Harishchandra की रचनाएँ उनके समाज सुधारक दृष्टिकोण, विचारशीलता और साहित्यिक उत्कृष्टता की दिशा में उनके योगदान को दर्शाती हैं।

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