तुलसीदास के दोहे और हिंदी अर्थ | Tulsidas Ke Dohe In Hindi
Tulsidas Ke Dohe:- तुलसीदास जी एक प्रसिद्ध हिंदी कवि थे जिन्होंने अपनी रचनाओं में भगवान राम की महिमा गाई है। उन्होंने अपनी रचनाओं में कई दोहे लिखे हैं, जो हमें जीवन के बारे में अनेक ज्ञानवर्धक बातें सिखाते हैं। नीचे दिए गए हैं कुछ लोकप्रिय तुलसीदास के दोहे और उनके हिंदी अर्थ:
तुलसीदास जी एक महान संत, कवि और समाज सुधारक थे। उनके दोहे और दोहे के अर्थ बहुत ही प्रभावशाली होते हैं। कुछ प्रसिद्ध तुलसीदास के दोहे (Tulsidas Ke Dohe) हैं जैसे:
बिनु पानी, साधु कैसे होय।
दोहे का अर्थ:- तुलसी बिन जल के साधु कैसे बन सकते हैं, जैसे कि जल बिना किसी काम के नहीं होता है।
जो बिना सुने सहज नहीं मानै,
कहत करत बहुतन बखानै।
दोहे का अर्थ:- तुलसीदास जी कहते हैं कि एक व्यक्ति जो सुनने के बिना आसानी से मानने को तैयार नहीं होता है, वह बहुत कुछ बोलता है लेकिन उसे कोई ध्यान नहीं देता है।
बार-बार नहीं बोलना, जब दोहराए तो तात।
दोहे का अर्थ:- तुलसीदास जी कहते हैं कि हमें किसी बात को बार-बार नहीं बोलना चाहिए, बल्कि हमें उसे जब हमें समझाने की आवश्यकता हो तब ही दोहराना चाहिए।
बिन विनय के मन नहीं लगिक,
विनय बिना जीते नहीं धन्य त्रिभुवन।
दोहे का अर्थ:- तुलसीदास जी कहते हैं कि बिना विनय के कोई भी काम सफल नहीं होता है और विनय के बिना कोई भी व्यक्ति तीनों लोकों में धन्य नहीं होता है।
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंछी बोले उठ गयो पैर, देखा देखी बूढ़े नर।
दोहे का अर्थ:- तुलसीदास जी कहते हैं कि एक व्यक्ति जब भी बड़ा होता है तो उसे अपने आप को हमेशा धीरे रहना चाहिए। जैसे कि खजूर के पेड़ को भी बड़ा होने के बाद उसे नीचे से चीरा जा सकता है। इसी तरह पंछी भी बोलता है कि वह उठ जाता है जब वह अपने आप को बड़ा मानने लगता है और बूढ़े नर को देखने से हमें यह सीख मिलती है कि जीवन में हमें बुद्धिमान रहना चाहिए।
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राम नाम लिये बिना, प्राण नहीं जाते जान।
दोहे का अर्थ:- तुलसीदास जी कहते हैं कि राम नाम सबसे बड़ा नाम है जो हमें जीवन की उच्चता का अनुभव कराता है। इस दोहे में उन्होंने संसार में राम नाम के महत्व को समझाया है।
जननी जन्म भूमिस्छ सुर्य चंद्रमस धरा।
दोहे का अर्थ:- तुलसीदास जी कहते हैं कि हमारी माता पृथ्वी देवताओं से भी बड़ी होती है क्योंकि हम सभी उसी में उत्पन्न होते हैं। इस दोहे में उन्होंने माँ की महत्वता को जताया है।
बिनु पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाई।
दोहे का अर्थ:- तुलसीदास जी कहते हैं कि जैसे साबुन और पानी के बिना हम अपने शरीर को नहीं साफ कर सकते हैं उसी तरह हमारी आत्मा को साफ रखने के लिए हमें निस्संदेह शुद्ध विचारों और कर्मों को अपनाने की आवश्यकता होती है। इस दोहे में उन्होंने सत्यता और साबुन और पानी के बिना हम अपने शरीर को नहीं साफ कर सकते हैं उसी तरह हमारी आत्मा को साफ रखने के लिए हमें निस्संदेह शुद्ध विचारों और कर्मों को अपनाने की आवश्यकता होती है। इस दोहे में उन्होंने सत्यता और साफ-सफाई के महत्व को बताया है।
सुनी इक गाथा अब नर तरितेंगे पार।
दोहे का अर्थ:- तुलसीदास जी इस दोहे में यह कहते हैं कि यदि हम सच्चाई की गाथा सुनते हैं तो हम जीवन के समुद्र से पार कर सकते हैं। इस दोहे में उन्होंने सत्य के महत्व को बताया है।
बचन बेष क्या जानिए…… मनमलीन नर नारि,
सूपनखा मृग पूतना…… दस मुख प्रमुख विचारि।
दोहे का अर्थ:- तुलसीदास जी कहते हैं कि किसी भी महिला या पुरुष की भावना का पता उसके पहने सुन्दर वस्त्र और मीठे बोल से नहीं पता लग सकता। क्योंकि सूर्पनखा, पूतना, रावण और मारीच ने कपडे तो सुन्दर पहले थे और उनके बोल भी मीठे थे परन्तु उनके मन में पाप था और उनकी भावना बुरी थी।
काम क्रोध मद लोभ की….. जौ लौं मन में खान
तौ लौं पण्डित मूरखौं…… तुलसी एक समान
दोहे का अर्थ:- तुलसीदास जी कहते हैं कि जब तक ज्ञानी व्यक्ति के मन मे काम, क्रोध, घमंड और लालच आ जाना हैं। ऐसे में उस ज्ञानी व्यक्ति और मुर्ख व्यक्ति के बीच कोई अंतर नहीं होता दोनों एक सामान होते है।
तुलसीदास जी के दोहे (Tulsidas Ke Dohe) उनके जीवन दर्शन, धर्म और संस्कृति से संबंधित होते हैं। इन दोहों में जीवन के महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की जाती है।
ये थे कुछ लोकप्रिय तुलसीदास के दोहे (Tulsidas Ke Dohe)। उनके अर्थ हमें जीवन के मूल्यों के बारे में समझाते हैं।
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