हिन्दू धर्म में सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले 5 भगवान | महानता तथा शक्ति |

हिन्दू धर्म में सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले 5 भगवान |

दोस्तों, वैसे तो हिंदू धर्म में अनेक देवी-देवताओं की पूजा होती है। यहाँ सबसे अधिक पूजे जाने वाले पाँच भगवानों का नाम और उनकी गाथा की व्याख्या लिखने जा रहा हूँ। सनातन धर्म विश्व के सबसे बड़े और पुराने धर्मों में एक माना जाता है। इसीलिए तो कहा गया है जब जब सनातन पर खतरा आया है भगवन विष्णु अवतार लेके धर्म स्थापना किये है। इस धरती पर जब जब अधर्म का परचम ऊँचा हुआ है, तब वे अपने किसी न किसी रूप में धर्म ध्वजा संभाले है, और हर बार एक नए युग की शुरुवात किये है।

सनातन धर्म के सबसे अधिक पूज्य देवता:-

  1. भगवान विष्णु
  2. भगवान शिव
  3. भगवान ब्रह्मा
  4. माँ दुर्गा
  5. भगवान गणेश

1. भगवान विष्णु

भगवान विष्णु हिंदू त्रिमूर्ति (तीन मुख्य देवताओं) में से एक हैं, जिनका काम सृष्टि की रक्षा करना और उसके संतुलन को बनाए रखना है। उन्हें “पालनकर्ता” के रूप में जाना जाता है। भगवान विष्णु के दस मुख्य अवतार (दशावतार) हैं, जो समय-समय पर सृष्टि की रक्षा और अधर्म का नाश करने के लिए प्रकट होते हैं।  तिरुपति बालाजी मंदिर, श्रीरंगम मंदिर, और बद्रीनाथ मंदिर आदि भगवान विष्णु के प्रमुख मंदिर हैं। भगवान विष्णु की पूजा के लिए व्रत, उपवास, और विष्णु सहस्रनाम का पाठ किया जाता है। व्रत में एकादशी व्रत विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

पुराणों के अनुसार भगवन विष्णु के ये 10 अवतार हैं:-

  • 1.मत्स्य अवतार: मछली का अवतार, जिन्होंने मानवता को एक महाप्रलय से बचाया।
  • 2.कूर्म अवतार: कछुए का अवतार, जिन्होंने मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर उठाकर समुद्र मंथन में सहायता की।
  • 3.वराह अवतार: सूअर का अवतार, जिन्होंने पृथ्वी को राक्षस हिरण्याक्ष से बचाया।
  • 4.नरसिंह अवतार: आधे मानव और आधे सिंह का अवतार, जिन्होंने हिरण्यकशिपु को मारा।
  • 5.वामन अवतार: बौने ब्राह्मण का अवतार, जिन्होंने राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी।
  • 6.परशुराम अवतार: क्रोधी ब्राह्मण योद्धा, जिन्होंने अन्याय और अत्याचार को समाप्त किया।
  • 7.राम अवतार: राजा दशरथ के पुत्र, जिन्होंने राक्षस रावण का वध किया।
  • 8.कृष्ण अवतार: देवकी और वासुदेव के पुत्र, जिन्होंने महाभारत के युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और गीता का उपदेश दिया।
  • 9.बुद्ध अवतार: जिन्होंने संसार को अहिंसा और करुणा का मार्ग दिखाया।
  • 10.कल्कि अवतार: भविष्य में आने वाला अवतार, जो कलियुग के अंत में अधर्म का नाश करेगा।
  • 11. मोहिनी अवतार: मोहिनी रूप में भगवान विष्णु ने अमृत को देवताओं में बांटा और असुरों को छल से हरा दिया।
  • 12. हंस अवतार: हंस के रूप में, भगवान विष्णु ने सनक, सनंदन, सनातन और सनत कुमार को उपदेश दिया।
  • 13. दत्तात्रेय अवतार: अत्रि मुनि और अनुसूया के पुत्र के रूप में प्रकट होकर भगवान विष्णु ने संतों को ज्ञान प्रदान किया।
  • 14. यज्ञ अवतार: यज्ञ के रूप में, भगवान विष्णु ने सृष्टि की रक्षा के लिए देवताओं को शक्ति दी।
  • 15. ऋषभ अवतार: ऋषभदेव के रूप में, भगवान विष्णु ने संतों को धर्म और तपस्या का मार्ग दिखाया।
  • 16. प्रश्निगर्भ अवतार: प्रश्निगर्भ के रूप में भगवान विष्णु ने दैत्यों का वध करके धर्म की रक्षा की।
  • 17. व्याक्त अवतार: वेदों की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने इस रूप में अवतार लिया।
  • 18. नारायण अवतार: देवताओं की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने नर और नारायण के रूप में अवतार लिया और बद्रीनाथ में तपस्या की।
  • 19. हरि अवतार: हरि के रूप में भगवान विष्णु ने गजेंद्र मोक्ष की कथा में गजराज को बचाया।
  • 20. हयग्रीव अवतार: हयग्रीव के रूप में भगवान विष्णु ने वेदों की रक्षा की।
  • 21. श्रीधर अवतार: श्रीधर के रूप में भगवान विष्णु ने धर्म की स्थापना की और भक्तों की रक्षा की।
  • 22. सूर्य नारायण अवतार: सूर्य नारायण के रूप में भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर प्रकाश और जीवन का संचार किया।
  • 23. त्रिविक्रम अवतार: त्रिविक्रम के रूप में भगवान विष्णु ने तीनों लोकों को नापकर राजा बलि को अधर्म से मुक्ति दिलाई।
  • 24. दानवेंद्र अवतार: दानवेंद्र के रूप में भगवान विष्णु ने दानवों के बीच धर्म की स्थापना की।

भगवान विष्णु के ये सभी अवतार विभिन्न युगों और परिस्थितियों में प्रकट हुए और धर्म की स्थापना, अधर्म का नाश और भक्तों की रक्षा की। हर अवतार की अपनी विशेषता और उद्देश्य होता है, जो भगवान विष्णु की महानता और शक्ति को दर्शाता है।

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2. भगवान शिव

भगवान शिव को त्रिमूर्ति में संहारकर्ता के रूप में जाना जाता है। वे सबसे अधिक पूजनीय देवताओं में से एक हैं। उन्हें महादेव, नटराज, त्रिपुरारी, और महाकाल आदि नामों से भी जाना जाता है। उनके रुद्र रूप में वे विनाश के देवता माने जाते हैं। वे भक्तों के भोलेनाथ हैं, जो सरलता से प्रसन्न होते हैं। उनके नृत्य मुद्रा को नटराज कहा जाता है, जो सृष्टि, विनाश और पुनर्जन्म का प्रतीक है। माता पार्वती, उनकी पत्नी, जो शक्ति का प्रतीक हैं। भगवन गणेश और कार्तिकेय उनके पुत्र। काशी विश्वनाथ, केदारनाथ, और सोमनाथ आदि शिव के प्रमुख मंदिर हैं। शिव की पूजा के लिए विशेष रूप से सोमवार का दिन महत्वपूर्ण माना जाता है। शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, और भस्म अर्पित की जाती है। भगवान शिव के कई अवतार माने जाते हैं, जो विभिन्न समयों और संदर्भों में प्रकट हुए हैं।

पुराणों के अनुसार भगवान शिव के 15 प्रमुख अवतार है, जो निम्नलिखित है:-

  • 1. वीरभद्र: वीरभद्र भगवान शिव का उग्र और विनाशकारी रूप है। यह अवतार सती के यज्ञ में दक्ष प्रजापति के अपमान और उनकी मृत्यु के बाद प्रकट हुआ। वीरभद्र ने दक्ष के यज्ञ को नष्ट कर दिया और दक्ष का सिर काट दिया।
  • 2. भैरव: भैरव भगवान शिव का एक उग्र रूप है, जो काल (समय) का प्रतीक है। उन्हें काल भैरव भी कहा जाता है। भैरव का अवतार अधर्म और अन्याय के नाश के लिए हुआ।
  • 3. रुद्र: रुद्र शिव का प्रारंभिक रूप है, जिसमें वे विनाश और क्रोध के देवता के रूप में प्रकट होते हैं। वे वैदिक युग के देवता हैं और उनका वर्णन यजुर्वेद में मिलता है।
  • 4. शरभ: शरभ भगवान शिव का एक रूप है, जो आधे सिंह और आधे पक्षी के रूप में प्रकट होता है। यह अवतार भगवान नरसिंह (विष्णु का अवतार) के उग्र रूप को शांत करने के लिए लिया गया था।
  • 5. अर्द्धनारीश्वर: अर्द्धनारीश्वर शिव और पार्वती का सम्मिलित रूप है, जिसमें आधा शरीर पुरुष (शिव) का और आधा शरीर स्त्री (पार्वती) का है। यह रूप स्त्री और पुरुष के समानता और एकता का प्रतीक है।
  • 6. किरात: किरात अवतार में भगवान शिव एक शिकारी के रूप में प्रकट होते हैं। इस रूप में उन्होंने अर्जुन की परीक्षा ली और उसे पाशुपतास्त्र प्रदान किया।
  • 7. गजांतक: गजांतक अवतार में भगवान शिव ने एक विशाल हाथी (गजासुर) का वध किया। यह अवतार शक्ति और धैर्य का प्रतीक है।
  • 8. भिक्षाटन: भिक्षाटन अवतार में भगवान शिव एक नग्न भिक्षु के रूप में प्रकट होते हैं, जो भिक्षा मांगते हैं। यह अवतार तपस्या और त्याग का प्रतीक है।
  • 9. हनुमान: कुछ मान्यताओं के अनुसार, हनुमान जी भगवान शिव के अवतार माने जाते हैं। वे शक्ति, भक्ति और सेवा के प्रतीक हैं।
  • 10. महेश: महेश अवतार में भगवान शिव ने चंद्र देव को अपनी जटाओं में स्थान दिया, जिससे चंद्रमा को जीवनदान मिला। यह अवतार करुणा और दया का प्रतीक है।
  • 11. अश्वत्थामा: अश्वत्थामा महाभारत के महान योद्धा और गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र माने जाते हैं। उन्हें भी भगवान शिव का अंश अवतार माना जाता है।
  • 12. दुर्वासा: दुर्वासा ऋषि को भगवान शिव का अवतार माना जाता है। वे अपने क्रोध के लिए प्रसिद्ध हैं, और उनके क्रोध से डरकर लोग उनकी पूजा करते थे।
  • 13. यक्ष: यक्ष रूप में भगवान शिव ने युधिष्ठिर और उनके भाइयों की परीक्षा ली और उन्हें सत्य का मार्ग दिखाया।
  • 14. कृष्णदर्शन: इस अवतार में भगवान शिव ने भगवान विष्णु को कृष्ण रूप में दर्शन दिए और उन्हें आशीर्वाद दिया।
  • 15. अवतार त्रयम्बक: त्रयम्बक अवतार में भगवान शिव ने त्रिपुरासुर के वध के लिए प्रकट हुए।

इन अवतारों के माध्यम से भगवान शिव ने सृष्टि के विभिन्न समयों में धर्म की स्थापना, अधर्म का नाश, और भक्तों की रक्षा की। हर अवतार की अपनी विशेषता और महत्व है, जो भगवान शिव के विविध पहलुओं को दर्शाते हैं।

3. भगवान ब्रह्मा

भगवान ब्रह्मा को सृष्टि के रचयिता माना जाता है। वे त्रिमूर्ति में सृजनकर्ता के रूप में जाने जाते हैं। ब्रह्मा के चार मुख होते हैं, जो चार वेदों का प्रतिनिधित्व करते हैं।उनका वाहन हंस है। सरस्वती, जो विद्या और संगीत की देवी हैं। ब्रह्मा जी की पूजा कम होती है। पुष्कर (राजस्थान) में उनका एकमात्र प्रमुख मंदिर है।

4. माँ दुर्गा

माँ दुर्गा शक्ति और साहस की देवी हैं। वे बुराई के खिलाफ अच्छाई की प्रतीक मानी जाती हैं। माता दुर्गा हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण देवी हैं, जिन्हें शक्ति और साहस का प्रतीक माना जाता है। उन्हें अनेक नामों और रूपों में पूजा जाता है, और उनका उल्लेख विभिन्न पुराणों, महाकाव्यों, और धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। माता दुर्गा को विशेष रूप से दुर्गा पूजा और नवरात्रि के दौरान पूजा जाता है। माता दुर्गा को कई नामों से जाना जाता है, जैसे महादेवी, महिषासुरमर्दिनी, शेरावाली, और शक्ति।

माता दुर्गा का उद्भव मुख्य रूप से देवी महात्म्य (दुर्गा सप्तशती या चंडी पाठ) में वर्णित है। जब महिषासुर नामक दैत्य ने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया, तब देवताओं ने ब्रह्मा, विष्णु, और शिव से सहायता मांगी। इन तीनों देवताओं के क्रोध से उत्पन्न दिव्य ऊर्जा से देवी दुर्गा का प्राकट्य हुआ। माता दुर्गा का रूप अत्यंत शक्तिशाली और अद्भुत है। उनके दस भुजाएं हैं, जिनमें विभिन्न अस्त्र-शस्त्र होते हैं। वे सिंह (शेर) या बाघ पर सवार रहती हैं, जो उनकी अपार शक्ति का प्रतीक है।

माता दुर्गा ने महिषासुर को मारकर देवताओं को स्वर्ग का राज्य पुनः प्राप्त कराया। रक्तबीज नामक राक्षस, जिसके खून की हर बूंद से नया राक्षस उत्पन्न होता था, को भी माता दुर्गा ने अपने काली रूप में वध किया। माता दुर्गा ने शुंभ और निशुंभ नामक दैत्यों को मारकर धर्म की स्थापना की। नवरात्रि के नौ दिनों में माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। यह पर्व पूरे भारत में धूमधाम से मनाया जाता है, विशेषकर पश्चिम बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र, और उत्तर प्रदेश में।

दुर्गा पूजा विशेष रूप से पश्चिम बंगाल में प्रमुख पर्व है, जहाँ माता दुर्गा की मूर्तियों की स्थापना और पूजा की जाती है। यह पूजा अश्विन महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी से दशमी तक होती है। माता दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए लोग उपवास, व्रत, और अनुष्ठान करते हैं। दुर्गा सप्तशती का पाठ, दुर्गा चालीसा का पाठ, और दुर्गा अष्टमी का व्रत विशेष रूप से महत्वपूर्ण माने जाते हैं।

जम्मू और कश्मीर में स्थित यह मंदिर माता दुर्गा के वैष्णो देवी रूप को समर्पित है। कोलकाता में स्थित, यह मंदिर माता काली (दुर्गा का उग्र रूप) को समर्पित है। असम में स्थित, यह मंदिर माता कामाख्या को समर्पित है, जो कामना और शक्ति की देवी मानी जाती हैं। गुजरात में स्थित, यह मंदिर माता अम्बा को समर्पित है।

माता दुर्गा शक्ति, साहस, और करुणा की देवी हैं, जिनकी पूजा हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखती है। वे न केवल बुराई का नाश करने वाली हैं, बल्कि अपने भक्तों को शक्ति, साहस, और संरक्षण प्रदान करने वाली भी हैं। माता दुर्गा की पूजा करने से व्यक्ति में आत्मविश्वास, धैर्य, और भक्ति का संचार होता है, जिससे वह जीवन की कठिनाइयों का सामना कर सकता है।

माँ दुर्गा के 9 प्रमुख रूप हैं, जिन्हें नवरात्रि के समय पूजा जाता है:-

  • शैलपुत्री
  • ब्रह्मचारिणी
  • चंद्रघंटा
  • कूष्मांडा
  • स्कंदमाता
  • कात्यायनी
  • कालरात्रि
  • महागौरी
  • सिद्धिदात्री

वैष्णो देवी, कामाख्या देवी, और कालीघाट मंदिर आदि माँ दुर्गा के प्रमुख मंदिर हैं। नवरात्रि के दौरान माँ दुर्गा की पूजा विशेष रूप से की जाती है। अष्टमी और नवमी का दिन विशेष महत्वपूर्ण माना जाता है।

5. भगवान गणेश

भगवान गणेश को “विघ्नहर्ता” और “सिद्धिदाता” के रूप में जाना जाता है। वे हर कार्य के प्रारंभ में पूजे जाते हैं उनका सिर हाथी का है, जो बुद्धिमत्ता और शक्ति का प्रतीक है। उनका वाहन मूषक (चूहा) है। उनके माता-पिता भगवन शिव और शक्ति स्वरूप माता पार्वती है। उनके भाई भगवन कार्तिकेय है। सिद्धिविनायक, अष्टविनायक मंदिर, और गणपति पंडाल आदि गणेश के प्रमुख स्थान हैं। गणेश चतुर्थी का पर्व विशेष रूप से गणेश जी की पूजा के लिए मनाया जाता है।

इन पाँच भगवानों की पूजा और महिमा का महत्व हिन्दू धर्म में बहुत अधिक है। ये देवता सृष्टि के विभिन्न पहलुओं को नियंत्रित करते हैं और उनकी पूजा से व्यक्ति को विभिन्न प्रकार की आध्यात्मिक और सांसारिक सफलताएँ प्राप्त होती हैं।

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